Tuesday, April 24, 2007

एक शाम (II)

एक थकी सी शाम थी
घर  आया  तो  उलझनों  ने  दरवाज़ा  खोला  ....
बैठा  ही  था  की  अधूरे  सपनों  ने  आ  घेरा  ......
बिस्तर  पर  लेटा तो  दर्द  भरी  यादें  पहले  से  वहां थी  ........
उन्हें  दिलासा  दे  वहां  से  चला  ....
नहीं ...

छोड़  कर  भागा ......
आज  तक  भाग  रहा  हूँ  ज़िन्दगी  के ठहराव  से .....

मेरे साथ मैं ...




शाम अलविदा कहने को थी...
रात अंगडाई ले सुस्ती मैं...
थे कुछ हवा के झोंके ताज़गी के दीवाने
कुछ तनहाई मैं खोये से...
पर मौसम में नशा था कुछ अजीब सा ...
यादें थी उसमे कुछ बिछड़ों की, कुछ अपनो की
रस्ते पे पडी पत्तियों से चलने कि आवाज़ आयी
पलट के देखा आपनी सी शाखियत सामने थी
दिखने में मुझ जैसा 
फ़र्क था चहरे पे चमक और मुस्कराहट का
था वो मेरा अक्स 
यादों के चेहरों मैं लिपटा
अजीब सा अपनापन था उस कि आखों में
मैं फूट पडा आचानक
मैंने खा प्यार है शायद मुझे किसी से
सब कुछ उसे बताया पर कोई जवाब नही पाया
लंबी सांसें ले उसने चुप्पी तोडी
मेरी आखों में घूर कर बोला ...
"प्यार और तुझे "
चार बार साथ हँसने बैठने से प्यार नही होता
किसी को देख कर आहें भरना 
प्यार नही लुत्फ़ कि निशानी है
यह किताबी बातें हैं 
शायरी के लिए रहने दो उन्हें वहाँ
मैं बोला
" क्यों आती हैं यादें किसी के जाने के बाद "
" नज़र क्यों देखती है वहां उसके उसके जाने के बाद "
" क्यों किसी के दर्द का एहसास मुझे है "
यह प्यार नही है पागलपन है 
इलाज़ कि ज़रुरत है
प्यार तो धोका है 
नज़र का दिल का दिमाग का
दिमाग का फितूर है 
ऐसी दुनिया है जो नही है कहीँ नही है
एक दुनिया जो बनी है है धोके से
दुःख से दर्द से
सपने मैं जीना छोड़ हकीकत में आ ......
सपने मैं जीना छोड़ हकीकत में आ ......
आचानक सपना सा टूटा
देखा रात चारो ओर खडी थी
मुझ अकेले को
चल दिया घर की ओर 
मान अक्स का कहना
"हक़ीकत" मैं आया सपनो को छोड़ कर
सोचा शायद सच था अक्स का कहना
पर मान ना पाता मैं इसे
शायद जीना चाहता हूँ धोके में 
वह अस्तितिवहीन एहसास पाना चाहता हूँ
एक एहसास ही तो है सब कुछ
किसी के साथ होने कि ख़ुशी या उस से बिचाड़ने का गम
किसी को देखने दूर तक जाना
ना दिखने पर मुरझाना 
या दिखने पर स्वतः खिलखिलाना
एक एहसास ही तो है
पुरी रात मिलने से पहले सवाल जवाब सोचना
मिलने पर कुछ ना कह पाना
सब कुछ भूल जाना
खो जाना नयी दुनिया में
एक एहसास ही तो है
किसी की बाँहों में खोना
किसी के कंधे पर सर रख सोना या रोना
किसी के लिए सबकुछ लुटाना, 
खुद से ज्यादा चाहना
एक एहसास ही तो है
इतना सब धोका तो नही
कुछ तो है
"हाँ यह प्यार है प्यार ही है "
यही सोचते सोचते घर पहुंचा देखा
ना उलझनों ने दवाज़ा खोला
ना अधूरे सपने दिखे
बिस्तर पर दर्द कि जगह कुछ अरमान खेल रहे थे
आख़िर आईने मैं चहरा देखा
चमक और मुस्कुराहट थी चहरे पर .....

संशय




छलके हुए प्य्ले, वो टूटी बोतले .......
वो सलवटों वाली चादर, गंदे कपड़ों का ढ़ेर .......
फटा हुआ पर्दा, बिखरा हुआ सामान .........
इस सन्नाटे मैं दबी हंसी............
ये गम कि दस्तक नही, ख़ुशी कि परछाई है !!!!!!!!!

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