Sunday, December 26, 2010

मेरी इबादत







ना मस्जिद का पता 
ना खुदा के दर का इल्म
ना पूरब-पश्चिम का अंदाज़ 
ना आयतें ज़ुबानी 
ना वजू का तजुर्बा 
ना नमाज़ का शुहुर
ना वक्त का होश 
ना जन्नत की खुअहिश 
ना दोज़क का डर  
फिर भी
सदका रोज़ कर लेता हूँ   
वो सामने के घर में 
दो साल के कान्हा 
की पेशानी चूम  
उसकी लम्बी उम्र की 
की दुआ मांग लेता हूँ
इबादत हो जाती है  

कुछ होता तो होगा




नज़र नहीं करती 
तो क्या
आहों के संदेसे
बुनती तो होगी 
कल की तस्वीरें  
ज़हन में 
तैरती तो होगी 
शब्बाखैर कर 
एक दुआ 
मेरे नाम की भी 
मचलती तो होगी 
बड़े मशहूर 
हो चले हैं किस्से 
तेरी रुसवाई के 
फिर भी यकीन हैं
कभी तो 
मेरे ख्याल पे 
आँख में 
पानी की बूँद 
उतरती तो होगी 

Friday, December 24, 2010

एक रेशा ..





एक रेशा 
जो तुम्हे मुझ से जोड़े है 
उसे इतना ना खीचो 
इतना वज़न ना डालो 
तुम्हारे मिजाज़ का 
खिचाव वो सह ना पायेगा 
वो रेशा 
बहुत संजोया है मैंने 
बहुत नाज़ुक है 
अब्र सा 
उसका इम्तहान ना लो 
एक फैसला बुनो 
या तो अपना रेशा
मेरे रेशे में जोड़ 
उसे दम दो 
या मेरे कच्चे रेशे को 
अपने सिरे से खोल 
मुझे आज़ाद कर दो 
अब इम्तहाँ ना लो 

एक रेशा
जो तुम्हे मुझ से जोड़े है
उसे इतना ना खीचो ...

मौसम बदल गया





आसमान तब भी नीला था 
आज भी है 
पुरवाई तब भी मंद थी 
आज भी धीमी ही है
सूरज तब भी
मुह छुपता था बादल में 
आज भी वही छुपा है 
सब कुछ
अमूमन वैसा ही है
जैसा तब था 
पर वो गुलाब 
जो तुमने ठुकरा दिया 
वो मुरझा कर 
सूख गया

कुछ भी वैसा नहीं रहा 
मिजाज़-ए-मौसम बदल गया 

काश हर रात अमावस होती



हर साँझ 
मरते सूरज को 
अपना दर्द थमा 
महताब की राह तकता हूँ 
मगर चाँद पे तो 
सूरज की उधारी है 
वो साजिशन 
वही दर्द
ब्याज समेत  
मेरे हिस्से की 
चांदनी में मिला 
ठंडी रौशनी में 
आग लगा देता है 

काश हर रात अमावस होती


Tuesday, December 14, 2010

बंद नब्ज़ ...



उसकी पायंत सोता हूँ
तब से हर रात
धीमी ही सही
पर आवाज़ दे शायद
और कहीं मैं सुन ना पाऊ
पर अब ना कोई आवाज़
ना घरघराहट
एकदम जड़
हमेशा तो ऐसा ना था
रातों रात सोने ना देता
खिलखिलता
चीखता
शोर मचाता
कितनी रातें
इसके कंधे पे कटी
निशाचरी
कितनी दफ़ा इसने
रुलाया
आंसू पोंछे
हंसाया
तन्हाई बांटी
कितनी सुबहें
इसकी आवाज़ से नहा
दुनिया सुनी
एक खास दुनिया
जिसका दरवाज़ा था वो
शायद दरवाज़े
का ताला बदल गया
मेरी चाबी बेअसर है
बात करता हूँ
तो जवाब नहीं आता
तुम भी कुछ कहती तो होगी
पर अल्फाज़ हमारे बीच
कहीं अटक जाते होंगे
कोई मर्ज़ तो ज़रूर है
हकीम बेअसर
नब्ज़ बंद
डैड हो गया शायद
कल दफना दूंगा
अपना ये फ़ोन

Friday, December 10, 2010

आखरी जलसा...

 





ए सुनो ..!
रोना धोना बंद करो 
अब ना रोको 
आज़ाद हो जाने दो  

जैसे तैसे 
छूटा हूँ इस बवाल से 
मंजिल आने का 
थोडा जश्न मनाने दो 

जिंदगी भर 
मर मर के जिया हूँ 
अब आखिरकार 
जी के मर जाने दो 


सालों इंतजार के बाद 
महफिल-ए-मय्यत सजी है 
सब मेरे लिए जमा हैं 
उनसे गुफ्तार तो हो जाने दो 

पहियों पे चल
थक चुका हूँ  
कन्धों की सवारी का 
लुत्फ़ उठाने दो 


जिंदगी का शोर
भर चुका है जिस्म मैं 
मौत का सन्नाटा 
कैद हो जाने दो 



ए सुनो ..
रोना धोना बंद करो ..

सूर्यास्त नहीं चन्द्र उदय है 
मेरा आखरी जलसा 



Thursday, December 2, 2010

तेरी हकीक़त ... !!



ठंडा सूरज 
बियाबान महफ़िल
सुनसान भीड़
शांत चीख  
खाली आखें   
जलता महताब 
काली रौशनी  
सफ़ेद परछाई 
मुर्दा जिंदगी 

इतनी ही सहन कर पाया 
तेरी हकीक़त 
शुक्र है 
फिर दर्द उफक से उतर गया
होश और याददाश्त 
ने साथ छोड़ दिया ....

Sunday, November 28, 2010

एक नज़्म



एक नज़्म
ख्वाइश से बनी 
अरमानों से लिखी 
पर अधूरी 

एक नज़्म
रग़-रग़ में बसी  
जुबा पे चढ़ी 
पर अधूरी 

एक नज़्म
आखों में सोती-जगती  
भीगती-सूखती  
पर अधूरी 

एक नज़्म
टुकड़ों में बटी
एक साथ रखी 
पर अधूरी  

एक नज़्म
मेरे हाथ से सरकती 
मुट्ठी में रेत सी 
पर अधूरी


एक नज़्म 
पर अधूरी 

Friday, November 26, 2010

थोडा यूं ही ...





आज सोचता हूँ 
थोडा बिन सोचे यूं ही लिख दूं
थोड़ी श्याही यूं ही जया कर दूं
थोड़े पन्ने यूं ही रंग दूं  
थोड़े ख्याल यूं ही उड़ा दूं 
आज सोचता हूँ 
थोडा यूं ही ....

Monday, November 22, 2010

ख्वाब की हकीकत


वाह!
         वो आफरीन मंज़र
         अब्र से नाज़ुक
उफ़!
         वो कच्चा कलाम
         फीकी पनीली श्याही
आह!
        वो खालिस ख्याल
        हकीकत की मिलावट
हाय!
       वो उधड़ता फ़साना
       रफू की कोशिश


Sunday, November 21, 2010

बटवारा




दोनों अलग हो गये 
पर बटवारा बराबर नहीं हुआ 
उसका 'कुछ' मुझमे रह गया 
और मेरा 'कुछ' उस मैं अटक गया

मेरे जैसी कसक कभी उसको भी उठती होगी क्या ?


Image Ref: http://www.myfreewallpapers.net/music/pages/pink-floyd-division-bell.shtml

Monday, November 15, 2010

कैद



मैं क्या ..
मेरा अक्स तक
टूट कर बिखर गया
मुख्तलिफ तजुर्मे में
इस भीड़ का
हर पुर्जा मैं हूँ
विक्षिप्त मैं
अदद, फिर एक बार
हमारे अक्सओं की सरहद
घोलने की तम्मना में
तेरे वीरान शहर के
हर कांच की परत में
बा ख़ुशी कैद हो गया

मेरा अधूरा टूटा अक्स !

Tuesday, November 2, 2010

तकरार






आज लड़ पड़ा 'वो' 'उस' से
अनबन तो ज़माने से थी
पर अपनी शक्सियत के मुगालते में
बस वो फासले गलाता रहा
कितने चौराहों पर खोया
कितना भटका
रंगीन अंधेरों में
मुसलसल तनहा
सुनसान सफ़र में
चाँद से शिकायतें की
पर चाँद का मशकूक अंदाज़
कभी खुश
कभी ग़मगीन
कभी लापता
ना जाने किस-किस से और कहाँ
अनचाहे, अनजाने रिश्ते निभाए
पर कमबख्त फासला है की मरता ही नहीं
पलकों भर का फासला
ज़माने से तय कर रहा था वो
इस बरसात में जक्मी हो
'रास्ते' का वजूद
दम तोड़ गया

आज लड़ पड़ा 'रास्ता' 'मंजिल' से


Tuesday, October 19, 2010

कैसे गुफ्तगू हो......



नासमझी की सद्दी सुलझाने मै
बेपनाह उलझता जाता हूँ
अल्फाजों - मायनों की कुछ अनबन ठनी है
और मायनो से एहसास लापता है
कहने और सुनने
दिखने और देखने
छुहन और एह्साह का
तर्जुमा नासाज़ है
हर कोशिश पे गहराते हैं फासले
सिकुड़ते हैं एहसास
बदहवासी के इस मंजर में
नशा -ए-इल्म सवार है ज़हन पे
और जिस्म पे ठंडा सन्नाटा काबिज़ है
इन खस्ता हालातों में
कैसे इन एहसासों का ज़िक्र पढूं
कैसे अल्फाजों की चोट सुनु
कैसे नज़र वाकया बयां करे
कैसे जिस्म गवाही दे

कैसे गुफ्तगू हो ...कैसे ???

Wednesday, February 3, 2010

याददाश्त की डयरी



बा एहतियातन भी
एक गुजरी उडान छलक गयी
तह बना कर रखी थी
महफूज़ एक कोने मैं
ख्याली उड़ानें, जीते जागते सपने
अरामानों की थोड़ी जिंदगी 
और ना जाने क्या क्या
परतें उलटी
तो उडती गर्द मैं
वो कच्चे ख्याल उभर आये
तैरती-उडती कार दिखी
सुना है
सच मैं बना दी है किसी ने !
Fastest century मारने वाला Bat भी मिला
आज तक unused पड़ा है
IIT और NDA की जकेट्स की स्लिप भी मिली
दर्जी पर अब तक
उनका बयाना बाकी है
फटी याददाश्त की डयरी मैं
कुछ दुरस्त वाकिये और दर्ज हैं
जैसे कल के ही हों
जिंदगी के कलाम में
तुम्हे कैद करने की कोशिश
अब भी धुंधली नही हुई 
जब तब फ्द्फ्दाती भी है
पर ना तुम कलाम में दर्ज होती हो
न खवाबों का काफिला बढता है
इसके आगे के सफ्हे इंतजार मैं हैं
ख्वाबों की श्याही के तर होने के ……

हमारी विरासत


आज कल modeling कर रहा हूँ
मेरा show रोज़ होता है , सुबह से शाम
ढंग से सोने भी नहीं देते
Spotlight घूरती रहती हैं रात भर
मेरी झुर्रियों, मेरे अधूरेपन मैं
इन्हें अदाइगी दिखती है
लोग वाह - वाह, विस्मय , शोक बिखेर
भूल जाते हैं
कहते हैं मैं भी कभी 'जीता' था

आज कल modeling कर रहा हूँ
ना करूँ तो मारा जाऊंगा
मेरी दवाई का यही तो सहारा है.....

मजबूर विरासत !!!!

About Me

My photo
Bulandshahr, UP, India
i work on philosophies, i sketch manually but work on computers, i explain a lot and people listen me like teachers, i m technocrat and guide engineers,i own a shop in market and call it office ,I can create walls n fill the gaps ... i m AN ARCHITECT