आज लड़ पड़ा 'वो' 'उस' से
अनबन तो ज़माने से थी
पर अपनी शक्सियत के मुगालते में
बस वो फासले गलाता रहा
कितने चौराहों पर खोया
कितना भटका
रंगीन अंधेरों में
मुसलसल तनहा
सुनसान सफ़र में
चाँद से शिकायतें की
पर चाँद का मशकूक अंदाज़
कभी खुश
कभी ग़मगीन
कभी लापता
ना जाने किस-किस से और कहाँ
अनचाहे, अनजाने रिश्ते निभाए
पर कमबख्त फासला है की मरता ही नहीं
पलकों भर का फासला
ज़माने से तय कर रहा था वो
इस बरसात में जक्मी हो
'रास्ते' का वजूद
दम तोड़ गया
आज लड़ पड़ा 'रास्ता' 'मंजिल' से
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