नासमझी की सद्दी सुलझाने मै
बेपनाह उलझता जाता हूँ
अल्फाजों - मायनों की कुछ अनबन ठनी है
और मायनो से एहसास लापता है
कहने और सुनने
दिखने और देखने
छुहन और एह्साह का
तर्जुमा नासाज़ है
हर कोशिश पे गहराते हैं फासले
सिकुड़ते हैं एहसास
बदहवासी के इस मंजर में
नशा -ए-इल्म सवार है ज़हन पे
और जिस्म पे ठंडा सन्नाटा काबिज़ है
इन खस्ता हालातों में
कैसे इन एहसासों का ज़िक्र पढूं
कैसे अल्फाजों की चोट सुनु
कैसे नज़र वाकया बयां करे
कैसे जिस्म गवाही दे
कैसे गुफ्तगू हो ...कैसे ???
1 comment:
नशा -ए-इल्म सवार है ज़हन पे
और जिस्म पे ठन्डे सन्नाटे का कब्ज़ा है
इन खस्ता हालातों में
कैसे इन एहसासों का ज़िक्र पढूं
कैसे अल्फाजों की चोट सुनु
कैसे नज़र वाकया बयां करे
कैसे जिस्म गवाही दे
well executed... same prob faced by every witter... how to write??? great job...
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