मैं क्या ..
मेरा अक्स तक
टूट कर बिखर गया
मुख्तलिफ तजुर्मे में
इस भीड़ का
हर पुर्जा मैं हूँ
विक्षिप्त मैं
अदद, फिर एक बार
हमारे अक्सओं की सरहद
घोलने की तम्मना में
तेरे वीरान शहर के
हर कांच की परत में
बा ख़ुशी कैद हो गया
मेरा अधूरा टूटा अक्स !
टूट कर बिखर गया
मुख्तलिफ तजुर्मे में
इस भीड़ का
हर पुर्जा मैं हूँ
विक्षिप्त मैं
अदद, फिर एक बार
हमारे अक्सओं की सरहद
घोलने की तम्मना में
तेरे वीरान शहर के
हर कांच की परत में
बा ख़ुशी कैद हो गया
मेरा अधूरा टूटा अक्स !
2 comments:
sundar abhivyakti
Thanks a lot .. !!
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