आसमान तब भी नीला था
आज भी है
पुरवाई तब भी मंद थी
आज भी धीमी ही है
सूरज तब भी
मुह छुपता था बादल में
सूरज तब भी
मुह छुपता था बादल में
आज भी वही छुपा है
सब कुछ
अमूमन वैसा ही है
जैसा तब था
अमूमन वैसा ही है
जैसा तब था
पर वो गुलाब
जो तुमने ठुकरा दिया
वो मुरझा कर
सूख गया
कुछ भी वैसा नहीं रहा
मिजाज़-ए-मौसम बदल गया
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