Monday, March 28, 2011

खबर ......

वो मर गया 
शायद आज
या कल 
या और पहले 
मुझे खबर अभी मिली 

अच्छा हुआ 
चलता - फिरता चल बसा 
खुद अपनी कब्र में मसरूफ हो गया 
जीना मुश्किल हो गया था 
जितना जीता
उतना तड़पता 
लाचार-कमज़ोर 
तो था ही 
सुन्न भी हो चला था 

उठावनी और तरेहवी की 
रस्म तो है नहीं 
बस थोड़े 
सदमे का रिवाज़ है 
वो भी धुल जायेगा 
चन्द दिनों में 

वसीयत में 
नाजायज़ जायदाद 
मेरे नाम कर गया 
और बेदखल कर गया 
'अहम'  से 

मरे से तार्रुफ़ करा दू  
दोबारा मुलाकात तो होगी नहीं
'वजूद' था वो  
मर गया
शायद आज
या कल 
या और पहले 
मुझे खबर अभी मिली 

Sunday, March 13, 2011

'नज़र'


मेरी 'नज़र'
एक झलक 
अदा या इशारे पे 
'तुम्हे' खीच के 
'भीड़' से 
जुदा कर देती है   
पर तुम्हारी 'नज़र' को  
'मैं' फ़क्त 'भीड़' हूँ 
हमेशा 

या खुदा सुकून बक्श 
एक 'नज़र' को बदल दे 
चादर चढाऊंगा 

तोहमत

रिश्ते का 
जन्म कराने में 
दाई पे इलज़ाम है 
माँ के खून का 


Friday, March 11, 2011

आहों मैं गुफ्तगू


खस्ताहाल
सुनसान राह का 
ज़र्रा ज़र्रा उखड़ा 
बस वहीँ पड़ा है 
एक दम सुन्न  
मायूस बजरी 
ठोकरों से 
तड़पती-हिलती तो है 
पर शख्सियत 
मौत के मानिंद खामोश 
जुल्मो की दास्ताँ है 
उसकी हर दरार  
उस पे 
मुसाफिर भी
कुछ ऐसा ही 
हर कदम पे
दोनों की 
आह निकलती है 

आहों मैं गुफ्तगू 
होती गयी और 
यूँही सफ़र कट गया  

कालिख़


डर लगता है 
रानाई से 
हर दफ़ा 
ज़ख्म अदा कर 
फरार  

कालिख़ ही भली  

क्या समझू इसे ....

कुछ अल्फाज़ 
जो काग़ज पे 
संजोये थे मैंने 
उन्होंने 
आखों से चुन
सफ़्हा उड़ा दिया 
या खुदा 
बेदर्दी थी 
या हया  
गुरूर था 
या ज़हन मैं 
महफूज़ करने की अदा

क्या समझू इसे....

आदत

कुछ आदत सी हो चली थी 
धोके से अब भी 
जगती है कभी  

पर आदत का क्या ...

फासले

जितना जाना उतने अनजाने होते गये 
करीब चले तो फासले सियाने होते गये 

Monday, March 7, 2011

डूब

जब होश आया 
डूब चुका था

अब तैर के भी क्या होगा ....!!!

बादल...



बादल -१

बालक सा
नटखट-चंचल
हर दम
'बूझो तो जाने' खेले
धूप छीन ले
पानी गिरा दे
चांदनी से मसखरी करे
और सॉरी भी ना बोले

बादल - २

हवा पे सवार
नर्म-हल्का
अकडू -घमंडी
फक्कड़ आवारा
तुनक मिजाज़


बादल - ३

अरे बादल !
वहां दहाड़ के रोता है 
यहाँ उदासी छा जाती है

इतना काजल मत लगाया कर
पूरा काला हो जाता है


Sunday, March 6, 2011

नक़ाब


बनावटी
चेहरे 
पे चेहरे
मुख्तलिफ अंदाज़ में पुते 
लाल हरे 
काले सफ़ेद 
रंगीन मुखौटे 
अजीब ओ गरीब  
बेइन्तहा मनमोहक 
हद डरावने 
चेहरे के ऊपर
नकाब लगा 
कुछ से कुछ दिखते हैं 

उस नकाब का क्या 
जो इस नकाब के नीचे सिला है ?


Wednesday, March 2, 2011

मायावी


जहाँ पिघलते स्वरुप पे 
घुले रंग-रूप में 
उसका छणिक अस्तित्व 
और संदिग्ध विक्तित्व  

वहीँ बीच मजधार में 
छलनी पे सवार 
अर्थों के समर में डूबी 
सतत अस्थिरता 

जो वेदना का पर्याय 
वही चित्त्शंती का साधन 
जहां रिश्तों का सौहार्द  
वहीँ उनकी परछाई का रुदन 

भ्रमक - मायावी 
अँधेरे में 
भानुमती का पिटारा 
खोल देता है 

सूर्य से कहो आठों पहर पहरा दे 


About Me

My photo
Bulandshahr, UP, India
i work on philosophies, i sketch manually but work on computers, i explain a lot and people listen me like teachers, i m technocrat and guide engineers,i own a shop in market and call it office ,I can create walls n fill the gaps ... i m AN ARCHITECT