जहाँ पिघलते स्वरुप पे
घुले रंग-रूप में
उसका छणिक अस्तित्व
और संदिग्ध विक्तित्व
वहीँ बीच मजधार में
छलनी पे सवार
अर्थों के समर में डूबी
सतत अस्थिरता
जो वेदना का पर्याय
वही चित्त्शंती का साधन
जहां रिश्तों का सौहार्द
वहीँ उनकी परछाई का रुदन
भ्रमक - मायावी
अँधेरे में
भानुमती का पिटारा
खोल देता है
सूर्य से कहो आठों पहर पहरा दे
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