ना मस्जिद का पता
ना खुदा के दर का इल्म
ना पूरब-पश्चिम का अंदाज़
ना आयतें ज़ुबानी
ना वजू का तजुर्बा
ना नमाज़ का शुहुर
ना वक्त का होश
ना जन्नत की खुअहिश
ना दोज़क का डर
फिर भी
सदका रोज़ कर लेता हूँ
सदका रोज़ कर लेता हूँ
वो सामने के घर में
दो साल के कान्हा
की पेशानी चूम
उसकी लम्बी उम्र की
की दुआ मांग लेता हूँ
इबादत हो जाती है
इबादत हो जाती है
2 comments:
nicely penned..I like it!
thanks !!!
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